कल्पित वस्तु का वर्णन करता है वहाँ प्रकृति की अपेक्षा अधिक सौंदर्यों को
2.
बोलने वाला किसी वस्तु की स्थूल कल्पना करके बोलता है तथा सुनने वाला भी कल्पित वस्तु का ज्ञान पाता है।
3.
ऐसा तो कभी नहीं होता कि जो वस्तु कहीं हो ही न, उसी की कल्पना की जाए, उसी का आरोप किया जाए कल्पित वस्तु की भी कहीं तो वस्तु सत्ता होती ही है।
4.
हर भाषा संसार का एक मूर्त अवलोकन प्रकट करती है, जो एक विशिष्ट और जटिल कल्पित वस्तु होता है और जिससे हम हमारे आस-पास की सारी चीज़ों को क्रमानुसार व्यवस्थित, वर्गीकृत कर सकते हैं और नामकरण दे सकते हैं।
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हर भाषा संसार का एक मूर्त अवलोकन प्रकट करती है, जो एक विशिष्ट और जटिल कल्पित वस्तु होता है और जिससे हम हमारे आस-पास की सारी चीज़ों को क्रमानुसार व्यवस्थित, वर्गीकृत कर सकते हैं और नामकरण दे सकते हैं।
6.
परिणामतः जो दुनिया इस उपन्यास में ‘कल्पित ' है, वह जैसे पाठ के रूप में हमें उपलब्ध होती है, वह जैसे हमें पठनीय हो जाती है, और उसी अनुपात में वह पाठ, जिसमें यह दुनिया कल्पित है, अपनी वास्तविकता खोकर एक कल्पित वस्तु के रूप में उभरता है.
7.
यहाँ श्लोक में कवि द्वारा कल्पित वस्तु से जिन हाथियों को गीत के अर्थ का ज्ञान लोक में सम्भव नहीं है उनमें भी इस प्रकार की बुद्धि (कीर्ति के अतिशय धवल होने के कारण मृणाल समझना) उत्पन्न करके राजा का यश चमत्कारपूर्ण है, यह वस्तु ध्वनित होती है।
8.
यह सिद्धांत निराधार है और तर्कहीन है क्युकी पहले तो इश्वर में हम अज्ञानता का दोष नहीं लगा सकते दूसरा यह जगत इस द्रष्टान्त से भी मिथ्या नहीं सिद्ध हो सकता क्युकी हम किसी वस्तु में किसी वस्तु का ज्ञान का भ्रम तभी कर सकते हैं जब उस कल्पित वस्तु का भी कहीं अस्तित्व होता है जैसे इस द्रष्टान्त में सर्प का भ्रम इसलिए है क्युकी सर्प भी इस जगत में विद्यमान है इसका मतलब ये जगत भी विद्यमान है.